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सांकेतिक भाषा परिचय (Sign Language Introduction):

सांकेतिक भाषा वह भाषा है जिसमें शब्दों की बजाय संकेत, हाव-भाव और प्रतीक का प्रयोग होता है। यह मूक-बधिर व्यक्तियों के लिए संचार का मुख्य माध्यम है। इसके माध्यम से वे अपने विचार और भाव आसानी से व्यक्त कर सकते हैं। यह भाषा शिक्षा, रोजगार और समाज में सहभागिता को सरल बनाती है। उदाहरण हैं – इशारों से बातचीत, सिर हिलाना, इमोजी और आइकन

सांकेतिक भाषा का अर्थ:

सांकेतिक भाषा वह भाषा है जिसमें शब्दों और ध्वनियों की बजाय संकेत, हाव-भाव, चित्र और प्रतीक के माध्यम से विचार और भाव व्यक्त किए जाते हैं। यह मुख्य रूप से मूक-बधिर व्यक्तियों के लिए संचार का साधन है।

सांकेतिक भाषा क्या है?

             या

सांकेतिक भाषा की परिभाषा:

             या

सांकेतिक भाषा किसे कहते है?

उत्तर:- यदि कोई व्यक्ति अपने विचार एवं भाव को संकेत के माध्यम से प्रकट करता है और अन्य कोई व्यक्ति उसे देखकर या सुनकर समझ जाता है तो उसे सांकेतिक भाषा कहते है।

                    या

• जब हम अपने विचारों, भावनाओं या संदेश को शब्दों और ध्वनियों के बजाय संकेतों, हाव-भावों, चिह्नों, चित्रों और प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त करते हैं, तो उसे सांकेतिक भाषा कहते हैं।

✓अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस प्रतिवर्ष 23 सितंबर को मनाया जाता है।

सांकेतिक भाषा का प्रयोग कौन करता है?

सांकेतिक भाषा का प्रयोग सबसे ज़्यादा मूक-बधिर (जो सुन या बोल नहीं सकते) व्यक्ति करते हैं।

सांकेतिक भाषा का प्रयोग सबसे ज़्यादा वे लोग करते हैं जो सुन या बोल नहीं सकते।

सांकेतिक भाषा का उदाहरण :

( 1 ) जेब्रा क्रॉसिंग

( 2 ) गाड़ी के हॉर्न

( 3 ) सिर हिलाना (हाँ/ना)

( 4 ) इशारों से बातचीत करना

( 5 ) आधुनिक युग में इमोजी और आइकन भी सांकेतिक भाषा के उदाहरण हैं।

सांकेतिक भाषा की विशेषताएँ :

1. इसमें शब्दों की जगह संकेत, प्रतीक, हाव-भाव और चिह्नों का प्रयोग होता है।

2. यह भाषा मूक-बधिर व्यक्तियों के लिए संचार का प्रमुख साधन है।

{(मूक-बधिर का अर्थ :

मूक का अर्थ है – जो बोल नहीं सकता

बधिर का अर्थ है – जो सुन नहीं सकता

अतः मूक-बधिर वह व्यक्ति होता है जो न तो सुन सकता है और न ही बोल सकता है। )}

3. इसमें चित्र, रेखाएँ, आकृतियाँ और रंगों का भी प्रयोग किया जाता है।

4. यह ध्वनि पर निर्भर नहीं होती।

सांकेतिक भाषा का महत्व :

1. मूक-बधिर व्यक्तियों के लिए संचार का माध्यम – सांकेतिक भाषा उन लोगों के लिए सबसे बड़ा सहारा है जो बोल या सुन नहीं सकते।

2. समान अधिकार और अवसर – यह भाषा मूक-बधिर व्यक्तियों को शिक्षा, नौकरी और सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने का अवसर देती है।

3. सामाजिक जुड़ाव – इसके माध्यम से मूक-बधिर व्यक्ति समाज से जुड़कर अपने विचार स्पष्ट कर सकते हैं।

4. आत्मविश्वास में वृद्धि – जब मूक-बधिरव्यक्ति अपनी भावनाएँ व्यक्त कर पाता है, तो उसका आत्मविश्वास बढ़ता है।

5. समावेशी समाज का निर्माण – सांकेतिक भाषा सभी को समान रूप से जोड़कर एक समावेशी और सहयोगी समाज बनाने में मदद करती है।

सांकेतिक भाषा के उद्देश्य (Objectives of Sign Language) इस प्रकार हैं :

1. मूक-बधिर व्यक्तियों को संवाद का साधन प्रदान करना।

2. शिक्षा और ज्ञान तक उनकी पहुँच आसान बनाना।

3. समाज में समानता और सहभागिता सुनिश्चित करना।

4. व्यक्तिगत भावनाओं और विचारों की अभिव्यक्ति को सरल बनाना।

5. समावेशी और सहयोगी समाज का निर्माण करना।

सांकेतिक भाषा का प्रभाव (Impact of Sign Language):

1. जीवन पर – मूक-बधिर व्यक्तियों को अपनी भावनाएँ और विचार आसानी से व्यक्त करने का अवसर मिलता है।

2. शिक्षा पर – शिक्षा प्राप्त करना मूक-बधिर व्यक्तियों के लिए सरल और सहज हो जाता है।

3. सामाजिक जीवन पर – समाज से मूक-बधिर व्यक्तियों का जुड़ाव और सहभागिता बढ़ती है।

4. रोज़गार पर – रोजगार और आत्मनिर्भरता के अवसर प्राप्त करना आसान होता है,मूक-बधिर व्यक्तियों के लिए ।

5. समाज पर – यह एक समावेशी, सहयोगी और समानता आधारित समाज के निर्माण में मदद करती है।

सांकेतिक भाषा निष्कर्ष:

सांकेतिक भाषा वह भाषा है जिसमें शब्दों की बजाय संकेत, हाव-भाव और प्रतीक का प्रयोग होता है। यह मूक-बधिर लोगों के लिए संचार का मुख्य तरीका है। इसके ज़रिए वे अपने विचार और भाव दूसरों तक पहुँचा सकते हैं। यह भाषा शिक्षा, रोजगार और समाज में जुड़ने में मदद करती है। सांकेतिक भाषा से उनका आत्मविश्वास बढ़ता है और यह समावेशी समाज बनाने में सहायक है।

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